ज़्यादातर धार्मिक विषयों पर कुछ भी कहना बहुत से अज्ञात तत्वों को चुनौती देना है। इसलिए कोई भी जल्दी इन विषयों पर बात नहीं करना चाहता। मैं भी नहीं। लेकिन कभी कभी आप अपनी सभ्यता और संस्कृति से प्यार होने की वजह से इन विषयों पर बोल पड़ते हैं और फिर पीछे जाने का रास्ता नहीं रह जाता फिर चाहे जो आपने कहा हो वो सच हो या एक सोचा समझा निष्कर्ष जिसपर आप पहुंचे हों। ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। मैं अपने कुछ विद्यार्थी मित्रों से बात करते समय भावावेश में कह गया कि रामायण को एक धर्मग्रन्थ नहीं मानना चाहिए और उसी बातचीत में मैंने कुछ उदाहरण भग्वद गीता से निकाल के दे डाले। उस वक़्त तो कुछ नहीं हुआ। मगर उनमे से एक मित्र ने दूसरे दिन मुझसे पूछा कि आपने ऐसा कहा और आपके ऐसा कहने का क्या आधार हो सकता है। एक तरफ तो आप रामायण को धर्म ग्रन्थ मानने से इनकार कर रहे हैं और दूसरी तरफ भग्वद गीता के उदाहरण दे रहे हैं। तो फिर मुझे अपने कहे का आधार सामने लाना ही था जिसे उनसे कहने की बजाय मैंने यहाँ लिखना बेहतर समझा ताकि अगर भविष्य में कोई फिर से वही प्रश्न करे तो मुझे दुबारा उतनी ही मेहनत करके उसका जवाब न देना पड़े और मैं सीधा अपनी इस पोस्ट का लिंक उसे दे दूँ।
सबसे पहले तो अगर हम रामायण को देखें तो वो कुछ लोगों की कहानी कहती है। इससे मतलब नहीं है कि किन लोगों की। इससे भी मतलब नहीं है कि ये कहानी ऐतिहासिक रूप से सच्ची है या नहीं। मतलब इससे है कि रामायण एक कहानी है और एक सीधा शैक्षिक ग्रन्थ नहीं। जो लोग आज के ज़माने की किताबें पढ़ते हैं वो समझ सकते हैं कि रामायण या तो एक novel है या एक non-fiction किताब (मैं इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता कि रामायण के ऐतिहासिक होने के क्या प्रमाण हैं), लेकिन वो एक self help की किताब नहीं है। यानी वो एक सीधी शिक्षा की किताब नहीं है। वहीं अगर आप भग्वद गीता को देखें तो उसमे कोई कहानी नहीं है। वो एक शैक्षिक ग्रन्थ है। एक self help की किताब है। भगवद गीता अपने आप में कोई कहानी नहीं सुनाती। इसलिए भग्वद गीता की रामायण से कोई तुलना नहीं की जा सकती। हाँ, गीता को एक दूसरे ग्रन्थ का हिस्सा माना जा सकता है, महाभारत का, जो रामायण की तरह ही एक कहानी है। महाभारत को कहीं भी उतनी इज्ज़त की दृष्टि से नहीं देखा जाता जितनी ऊंची दृष्टि से रामायण को। आपने कभी सुबह उठ के लोगों को महाभारत का पाठ करते नहीं देखा होगा, लेकिन राम चरित मानस (रामायण का एक रूप) का पाठ या गीता का पाठ करते बहुत लोग मिल जायेंगे। तो उस हिसाब से देखा जाए तो जब आप गीता पढ़ रहे हैं तो आपको हर लाइन, हर श्लोक एक शिक्षा, एक सलाह दे रहा है, जबकि जब आप रामायण पढ़ रहे हैं तो वो आपको एक कहानी सुना रही है। हालांकि बिना समझे दोनों को ही पढना व्यर्थ है।
दूसरी बात, रामायण के दो रूप हैं, वाल्मीकि रामायण और तुलसी दास की लिखी हुई राम चरित मानस। दोनों में ही राम, जो इस कहानी के हीरो हैं, ने जो भी किया है (जिसके बारे में हम आगे बात करेंगे) को किसी भी दार्शनिक रूप से समझाया नहीं है। दरअसल राम के सही और गलत करने के पीछे कोई भी गहरा दर्शन छुपा हुआ नहीं है। अब अगर हम गीता को देखें तो उसको शायद ही कोई वेद व्यास की रचना मानता हो। भग्वद गीता एक दर्शन का पर्वत है जिसपर कृष्ण का चरित्र खड़ा है। कृष्ण ने जो भी सही गलत किया है, उसको आप भग्वद गीता की कसौटी पर रख कर परख सकते हैं। कृष्ण अर्जुन को जो शिक्षा देते हैं गीता के माध्यम से वो सभी युगों में सभी लोगों के लिए प्रासंगिक है। राम के कृत्यों को आपको हमेशा दूसरे ग्रंथों के आधार पर तोलना होगा।
अब जहां तक रामायण को सच की झूठ पर जीत की कहानी माना जाता है उस बात का आधार भी कोई ठोस नहीं है। जैसे रावण के चरित्र को लीजिये। शिवभक्त रावण जिसने कुछ भी गलत नहीं किया, उसकी बहन राम को देख के आकर्षित होती है और विवाह का प्रस्ताव देती है। राम उससे कहते हैं “मैं तो विवाहित हूँ, मेरे भाई लक्ष्मण से पूछ लो।”
शूर्पनखा उनकी बात मानके लक्ष्मण से पूछने जाती है, और लक्ष्मण ढंग से मना करने के बजाय उसके नाक कान काट लेते हैं। पहला प्रश्न: क्या राम को पता नहीं था की उनके भाई लक्ष्मण भी शादीशुदा हैं? अगर हाँ तो उनका जवाब दुष्टता से भरा हुआ है। दूसरा प्रश्न: क्या राम को पता नहीं था उनका भाई मानसिक रूप से विक्षिप्त है और बात करने पर नाक कान काटने लगता है? तीसरा प्रश्न: लक्ष्मण ने जो तालिबान की तरह एक महिला के नाक कान काट लिए उनको महानता का प्रतीक कैसे माना जा सकता है? चलिए, इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढना अपनी जान पर खेलना है, लोग आपको धर्मद्रोही कह देंगे। अब आप ज़रा कल्पना कीजिये कि जिसके नाक कान काटे गए वो आपकी बहन है। कैसा लगा? रावण को वैसा ही लगा था। तो परम प्रतापी शिवभक्त रावण ने राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लिया। खुद रामायण कहती है की रावण ने सीता के अपहरण के बाद उनको पूरी इज्ज़त के साथ रखा और हाथ भी नहीं लगाया। अगर आप अपना दिमाग खोलके रामायण पढ़ें तो आपके मन में रावण के प्रति ऐसी इज्ज़त उठेगी जो पंडित उठने नहीं देंगे। और अंत में राम जाकर उस रावण को मार डालते हैं। इसे किस तरह बुराई पर अच्छाई की जीत माना जा सकता है? और फिर जिस पत्नी को वापस लाने के लिए रावण को मार डाला था उसे एक धोबी के कुछ कह देने पर घर से निकाल फेंकते हैं। मैं तो ऐसे व्यक्ति को मर्यादापुरुषोत्तम नहीं मान सकता, आप जो चाहें मान सकते हैं।
अब कृष्ण का चरित्र उठाइये। उन्होंने भी बहुत कुछ ऐसा किया जो साफ़ तौर पर भला नहीं कहा जा सकता, जैसे धोखे से सुयोधन को मरवा देना। लेकिन कृष्ण ने जो भी किया उसको वो दार्शनिक रूप से सही साबित करते हैं। भग्वद गीता वो सतम्भ है जिसपर कृष्ण का चरित्र खड़ा है। अगर आप कृष्ण को इश्वर न भी मानें तो भी वो आम आदमी नहीं प्रतीत होते। वो हर स्थिति में जानते हैं कि क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं। वैसे हमारी चर्चा का विषय रामायण और गीता की तुलना है, राम और कृष्ण की नहीं। और रामायण से आप ज्यादा कुछ नहीं सीखते। गीता से आप हर कदम पर सीखते हैं। दरअसल सनातन धर्मियों का पतन होने के बाद वो मूर्तिपूजक हो गए और राम और कृष्ण की मूर्तियाँ बना कर उनकी पूजा करने लगे, लेकिन अगर आप मूर्ती पूजा और राम चरित मानस का रोज़ का रटना निकाल दें तो रामायण के साथ ज़्यादा कुछ नहीं किया जा सकता। भग्वद गीता जो कि खुद कहीं भी मूर्तिपूजा की सलाह नहीं देती, कर्म को श्रेष्ठ बताती है, से आप हर कदम पर कुछ नया सीख सकते हैं अगर आप उसको समझते हुए पढ़ें तो।
मुझे पता है कि कई लोग, बल्कि ज़्यादातर लोग न सिर्फ मुझसे असहमत ही होंगे बल्कि इसको पढने के बाद गुस्से में लाल पीले होने लगेंगे। लेकिन मैंने जो भी कहा है वो बहुत सोचने के बाद निकाला हुआ एक निष्कर्ष है और अपनी संस्कृति, सभ्यता के प्रति मेरे प्रेम पर आधारित है जिसका पतन देख कर मुझे वैसा ही लगता है जैसा अपने परिवार को बर्बाद होता देख कर किसी को लगेगा।
- मधुवन ऋषिराज